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बुधवार, 5 मई 2010

किराये के कातिल को फांसी सूत्रधार से दुआ सलाम

कसाब को फांसी देना जरूरी है? आमिर अजमल कसाब को फांसी की सजा क्यों नहीं सुनाई जानी चाहिए थी? अव्वल तो ये है कि हम एक कुख्यात आतंकवादी संगठन के भाड़े के हत्यारे को उसके देश में और दुनिया में भारत की जमीनी हकीकतें नहीं समझने वालों की नजर में कसाब के तौर पर एक और शहीद बढ़ा देंगे और दूसरे फांसी से तो एक पल में  सारा किस्सा खत्म हो जाता है, मगर जेल की जिंदगी और वह भी एक इतने कुख्यात हत्याकांड के खलनायक की जिंदगी आसान नहीं रहने वाली और कसाब के जरिए हम दुनिया को संदेश दे सकते हैं कि हमे खून के बदले खून नहीं चाहिए। इस तर्क से असहमत ज्यादातर लोग होंगे मगर मेरा विनम्र आग्रह यह है कि कसाब आखिर सूत्रधार नहीं, सिर्फ एक किराए का कातिल है। फांसी पर चढ़ाना है तो पहले मुशर्रफ को चढ़ाओ, उसे कारगिल की सजा दो, नवाज शरीफ को अदालत में घसीट कर लाओ और जॉर्ज बुश जो अभी जिंदा हैं और अभी जिन्हें अलजाइमर की बीमारी नहीं हुई हैं, उन्हें  गवाह के तौर पर घसीट कर लाओ। कसाब ने अलग अलग मौकों पर आईएसआई के जिन आकाओ के नाम बताये  हैं और भारत की कानूनी एजेंसियो के पास जिनके रिकॉर्ड मौजूद हैं, फोन नंबर मौजूद हैं, पते और फोटो भी मौजूद हैं उन्हे भारतीय कानून का सामना करने के लिए मजबूर करो तो कोई बात हो। कसाब तो एक मामूली गरीब परिवार का बेटा है जिसे कत्ल कारोबार और रोजगार के तौर पर थमा दिया गया। कसाब से मेरी कोई सहानुभूति नहीं है। पकड़े जाते वक्त भी जिस तरह वह तुकाराम ओंबले के पेट में दनादन गोलिया दागता रहा था, एक कातिल के तौर पर उसे सजा दिलवाने के लिए सिर्फ यही गुनाह काफी है। उस पर तो भारतीय दंड विधान की धाराओं के तहत 87 आरोप लगाए गए थे जिनमे  से 84 प्रमाणित हो चुके हैं। लेकिन सिर्फ एक  साल कुछ महीने कसाब को सुरक्षित जिंदा रखने पर 33 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं और उसे एक झटके में फंदे पर लटका देने से आगे के सारे रास्ते बंद हो जाने वाले है। कसाब को जिंदा रखो और उसके जरिए पाकिस्तान की असलियत दुनिया को बताते रहो। दूसरे विश्व युद्व में हजारों लोगों को मार डालने वाले लोगों के खिलाफ मुकदमा चला कर बहुत सारे सबूत पेश किए गए थे और उनमें से कुछ बहुत बूढ़े हो कर भी आज भी गुमनाम जेलों में जिंदा है। कसाब की जिंदगी लेने की बजाए बर्बाद करना ज्यादा बेहतर न्याय है। मैं वकील नहीं हूं मगर इतना जानता हूं कि कसाब और उसके मारे गए साथियों ने जो किया है वह दुर्लभ से दुर्लभतम अपराध है और भारतीय कानून में  इसकी सजा फांसी के अलावा कुछ नहीं हो सकती। मगर कसाब को मौत दे कर हम आतंकवादियों को एक तर्क देंगे कि आखिर वे वतन और इस्लाम के लिए शहीद होने जा रहे हैं। पक्का मान लीजिए कि जिस दिन कसाब को हमने फांसी पर चढ़ाया उसी दिन पाकिस्तान में  सरबजीत सिंह फांसी पर झूल जाएगा। पाकिस्तान की यह पुरानी अदा रही है। एक पाकिस्तानी राजनयिक को जासूसी के इल्जाम में भारत से निकाला जाता है तो उसी समय पहले से तैयार दूसरे किसी भारतीय राजनयिक की फाइल खोल कर उसे भी जासूसी के इल्जाम में बाहर कर दिया जाता है। भारतीय जेल में किसी पाकिस्तानी आस्था वाले आतंकवादी जैसे मकबूल भट्ट को फांसी दी जाती है तो पाकिस्तान का जल्लाद भी एक भारतीय कैदी को फांसी पर चढ़ा देता है। आखिर ऍफ़बीआई ने पाकिस्तानी सेना के रिटायर मेजर अब्दुर रहमान हासिम सईद के खिलाफ पूरी फाइल तैयार कर ली है और इस फाइल में साफ साफ लिखा है कि सईद और इलियास कश्मीरी पाकिस्तान की ओर से दाऊद गिलानी उर्फ डेविड हेडली की मदद करते रहे हैं। कसाब भारत में कोई तीर्थ यात्रा करने नहीं आया था। यह निपट संयोग और मुंबई पुलिस की सफलता है कि कसाब को गिरगांव चौपाटी पर जिंदा पकड़ लिया गया। मारा जाता तो जैसे बाकी नौ आंतकवादियों और इसके पहले भारत की संसद पर हमला बोलने वालों की लाशे तक पाकिस्तान ने स्वीकार नहीं की थी, वैसे ही उसकी लाश भी दफन कर दी जाती। भारत सरकार ने तो इन कातिलों की दफन करने की खबर तक गोपनीय रखी। हम भारतवासी पाकिस्तान के साथ जो गलती बार बार कर रहे हैं उसे फिर से दोहराने का कोई फायदा नहीं है। हमारे पास स्पष्ट और तार्किक कारण था कि मुंबई पर हमला होते ही पाकिस्तान के आतंकवादी शिविरों पर बम गिरा देते। हमला होता, युद्व होता और हमेशा की तरह भारत ही जीतता। मगर पाकिस्तान को उसकी हैसियत में रखने का एक ही उपाय था जिसे हमने वैसे ही चूक दिया जैसे कारगिल में अटल बिहारी वाजपेयी ने नियंत्रंद  रेखा सेना को पार नहीं करने देने की ऐतिहासिक भूल की थी। यह संयोग नहीं हैं कि जिस दिन कसाब को मुंबई हत्याकांड के लिए दोषी ठहराया गया और यह तय माना गया कि उसे फांसी की सजा ही मिलेगी तो उत्तरी वजीरिस्तान में  खालिद ख्वाजा नाम के एक 58 वर्षीय आईएसआई अधिकारी की लाश मिली जो सीआईए के साथ मिल कर काम भी कर रहा था। मुंबई के कत्लेआम के सूत्रधारो में खालिद ख्वाजा का नाम भी है। जाहिर है कि पाकिस्तान कसाब को खुद बलि चढ़ाना चाहता है और उसके सारे संपर्को को खत्म कर देना चाहता है ताकि भारत के पास कोई सबूत नहीं रहे। वजीरिस्तान के लोग खुद सवाल कर रहे हैं कि ख्वाजा की हत्या इतने अचानक कैसे की जा सकती है? वह भी इतनी बेरहमी से कि माथे से ले कर कमर तक चौबीस गोलियां लगी और इसके बाद बाकायदा एक साफ कफन में लपेट कर उसे एक सार्वजनिक स्थान पर छोड़ दिया गया। पेशावर में मौजूद पाकिस्तानी सेना के एक रिटायर्ड जनरल शाद मोहम्मद सही कहते हैं कि पाकिस्तान की जनता अब खुद आतंकवाद का स्वाद झेल रही है और उसे भुलावे में रखने के लिए पाकिस्तान की सरकार अपने बड़े आतंकवादी सरगनाओं को बलि चढ़ा रही है। अगला नंबर दाऊद इब्राहीम का भी हो सकता है। आखिर उसके भाई नूरा को आईएसआई के समर्थन से एक डाकू ने सरेआम मार ही गिराया था। एक है सुल्तान अमीम तरार जो 1970 और 1980 के बीच तालिबान के साथ मिल कर आईएसआई की लड़ाई लड़ते रहे थे मगर अब पाकिस्तान ने उन्हें नजरबंद कर दिया है। हमे यह समझना चाहिए कि पाकिस्तान के शासक और पाकिस्तान की जनता को आप एक ही तराजू में रख कर नहीं तौल सकते। पाकिस्तान और भारत की विरासत एक है, दोनों के कुल कुटुंब एक दूसरे देश मंे बिखरे हुए हैं, पाकिस्तानियों का तीर्थ अजमेर और देवबंद भारत में हैं और आम पाकिस्तानी कभी नहीं चाहता कि भारत पर आतंकवाद का हमला किया जाए। भारतीय सेना और सुरक्षा बलों ने जब से मुंहतोड़ जवाब देना शुरू किया है तब से पाकिस्तान में ही ये आतंकवादी गदर मचाए हुए हैं। उन्हंे मरने और मारने के अलावा कुछ नहीं आता। जहां तक कसाब की बात है तो उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलना जायज है मगर फांसी तो उसे मुक्ति दे देगी। उम्र भर जेल में रहेगा तो दुनिया के दूसरे भटके हुए और अपने आपको जेहादी कहने वाले पचास बार सोचेंगे कि जेहाद के रास्ते पर निकले या नहीं?

आशुतोष पाण्डेय

5 टिप्‍पणियां:

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  2. ब्लॉग की सरस दुनिया में आपका स्वागत....देखना इस दुनिया का अनुभव आपको बहुत स्कून देगा....

    रचना बहुत सुंदर है....बधाई स्वीकार करें....

    आप ने बहुत ही गहरी और महत्वपूर्ण बात की है.....

    आपने अपनी रचना न होते हुए भी इसे अपने ब्लॉग से पोस्ट किया..यह जानकर बहुत ही अच्छा लगा...

    इससे साबित होता है कि आपको विचारों से कितना प्रेम है.....

    इस मुद्दे पर बहस होनी चाहिए....

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  3. बात तो पते की है, परन्तु फांसी न देने पर नए आने वाले भाड़े के हत्यारों का होंसला बुलंद होगा

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  4. फाँसी ज़रूरी है किंतु इससे समस्या सुलजाने वाली नहीं. समस्या भारत की सीमा के बाहर तो है ही, किंतु इसका मूल भारत भूमि पर ही है. इसके समाधान के लिए हमें अपने घर की स्थिति सुधारनी होगी जो अभी ख़स्ताहाल है, किराए के टॅटू सत्तासीन हैं, नेता भरष्टाचारी हैं जनता लाचार है.

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  5. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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